Saturday 6 July 2013

bahut sara likhna chahti hu

जब भी लिखने बैठती हूँ, तो  लालची हो जाती हूँ, ऐसा  लगता है कि , इतना लिखूं कि ......समझ में नही आता की, इतना सारा एक बार में कैसे लिखू , और मई वन्ही ढेर हो जाती हूँ
जब,यंहा से जाउंगी, तो फिर सोचना शुरू करूंगी, की क्या लिखना है, और वन्ही सोचते सो जाउंगी, किन्तु ये लिखना सतत चलता रहता है, कभी रुकता नही .
पता है, कल तहसील में मेरी साथ की पढ़ी classmet मिली, तो कहने लगी, अरे, तू तो बड़ी होशियार होती थी . मुझे बुखार सा हो गया, कि क्या अब मै  नही हूँ , क्यूंकि मै पैसा कमाने की मशीन नही बन सकी, व् एक लेखिका बनकर रह गयी, अत्म्संतुस्ती में सिमट कर , तोभी कभी किसी को, ये कहने का साहस नही जुटा सकी , की तुम सब लिखो .क्यूंकि मै नही चाहती , की दुसरे मेरी तरह बर्बाद हो, और जमाने में ठोकरे खाए .

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